कहै वाजिद पुकार – Kahai Wajid Pukar

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ओशो द्वारा वाजिद-वाणी पर दिए गए दस अमृत प्रवचनों का अप्रतिम संकलन।
ओशो द्वारा वाजिद-वाणी पर दिए गए दस अमृत प्रवचनों का अप्रतिम संकलन।

वाजिद--यह नाम मुझे सदा से प्यारा रहा है--एक सीधे-सादे आदमी का नाम, गैर-पढ़े-लिखे आदमी का नाम; लेकिन जिसकी वाणी में प्रेम ऐसा भरा है जैसा कि मुश्किल से कभी औरों की वाणी में मिले। सरल आदमी की वाणी में ही ऐसा प्रेम हो सकता है; सहज आदमी की वाणी में ही ऐसी पुकार, ऐसी प्रार्थना हो सकती है। पंडित की वाणी में बारीकी होती है, सूक्ष्मता होती है, सिद्धांत होता है, तर्क-विचार होता है, लेकिन प्रेम नहीं। प्रेम तो सरल-चित्त हृदय में ही खिलने वाला फूल है। वाजिद बहुत सीधे-सादे आदमी हैं। एक पठान थे, मुसलमान थे। जंगल में शिकार खेलने गए थे। धनुष पर बाण चढ़ाया; तीर छूटने को ही था, छूटा ही था, कि कुछ घटा--कुछ अपूर्व घटा। भागती हिरणी को देखकर ठिठक गए, हृदय में कुछ चोट लगी, और जीवन रूपांतरित हो गया। तोड़कर फेंक दिया तीर-कमान वहीं। चले थे मारने, लेकिन वह जो जीवन की छलांग देखी--वह जो सुंदर हिरणी में भागता हुआ, जागा हुआ चंचल जीवन देखा--वह जो बिजली जैसी कौंध गई जीवन की! अवाक रह गए। यह जीवन नष्ट करने को तो नहीं, इसी जीवन में तो परमात्मा छिपा है। यही जीवन तो परमात्मा का दूसरा नाम है, यह जीवन परमात्मा की अभिव्यक्ति है। तोड़ दिए तीर-कमान; चले थे मारने, घर नहीं लौटे--खोजने निकल पड़े परमात्मा को। जीवन की जो थोड़ी-सी झलक मिली थी, यह झलक अब झलक ही न रह जाए--यह पूर्ण साक्षात्कार कैसे बने, इसकी तलाश शुरू हुई। बड़ी आकस्मिक घटना है! ऐसा और बार भी हुआ है, अशोक को भी ऐसा ही हुआ था। कलिंग में लाखों लोगों को काटकर जिस युद्ध में उसने विजय पाई थी, लाशों से पटे हुए युद्ध-क्षेत्र को देखकर उसके जीवन में क्रांति हो गई थी। मृत्यु का ऐसा वीभत्स नृत्य देखकर उसे अपनी मृत्यु की याद आ गई थी। यहां सभी को मर जाना है, यहां मृत्यु आने ही वाली है। और अशोक जगत से उदासीन हो गया था। रहा फिर भी महल में, रहा सम्राट, लेकिन फकीर हो गया। उस दिन से उसकी जीवन की यात्रा और हो गई। युद्ध विदा हो गए, हिंसा विदा हो गई; प्रेम का सूत्रपात हुआ। उसी प्रेम ने उसे बुद्ध के चरणों में झुकाया। वाजिद अशोक से भी ज्यादा संवेदनशील व्यक्ति रहे होंगे। लाखों व्यक्तियों को काटने के बाद होश आया, तो संवेदनशीलता बहुत गहरी न रही होगी। वाजिद को होश आया, काटने के पहले। हिरणी को मारा भी नहीं था, अभी तीर छूटने को ही था--चढ़ गया था कमान पर, प्रत्यंचा खिंच गई थी, वहीं हाथ ढीले हो गए। —ओशो
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Publisher Osho Media International
Type फुल सीरीज