ज्यूं मछली बिन नीर – Jyun Machhli Bin Neer

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ओशो द्वारा प्रश्नोत्तर प्रवचनमाला के अंतर्गत दिए गए दस अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन।
ओशो द्वारा प्रश्नोत्तर प्रवचनमाला के अंतर्गत दिए गए दस अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन।

किसको देख कर कहेंगे? सोए लोगों की जमात ही है। तरह-तरह की नींदें हैं। अलग-अलग ढंग हैं सोए होने के। कोई धन की शराब पीकर सोया है, कोई पद की शराब पीकर सोया है। लेकिन सारी मनुष्यता सोई हुई है। जिन्हें तुम धार्मिक कहते हो वे भी धार्मिक नहीं हैं, क्योंकि बिना जागे कोई धार्मिक नहीं हो सकता है। हिंदू हैं, मुसलमान हैं, ईसाई हैं, जैन हैं--लेकिन धार्मिक मनुष्य का कोई पता नहीं चलता। धार्मिक मनुष्य हो तो हिंदू नहीं हो सकता है, मुसलमान नहीं हो सकता है। ये सब सोए होने के ढंग हैं। कोई मस्जिद में सोया है, कोई मंदिर में सोया है। मैं एक बड़े प्यारे आदमी को जानता था। सरल थे, अदभुत रूप से सरल थे! और आग्नेय भी थे, अग्नि की तरह दग्ध कर दें। नाम था उनका: महात्मा भगवानदीन। वे जब भी बोलते थे तो बीच-बीच में रुक जाते। कहते, बायां हाथ ऊपर करो। अब दायां हाथ ऊपर करो। अब दोनों हाथ ऊपर करो। फिर कहते, दोनों हाथ नीचे कर लो। मैंने उनसे पूछा कि यह बीच-बीच में रुक कर लोगों से कवायद क्यों करवानी? तो वे कहते, यह तो मुझे पक्का हो जाए कि लोग जागे सुन रहे हैं कि सोए हैं! और मैंने देखा कि यह सच था। जब वे कहते बाएं हाथ ऊपर करो, तो कुछ तो करते ही नहीं, कुछ दाएं कर देते। अधिकतर लोग तो सोए ही हुए हैं--यूं भी, आंखें खोले हुए भी सोए हुए हैं। नींद का अर्थ है कि तुम्हें इस बात का पता नहीं कि तुम कौन हो। काश, तुम्हें पता हो जाए कि तुम कौन हो, तो फिर जीवन में आनंद है, फिर जीवन में एक सुवास है! क्योंकि फिर जीवन का फूल खिलता है, जीवन का सूर्य निकलता है, उत्क्रमण की यात्रा शुरू होती है। अथर्ववेद का यह वचन प्यारा है: ‘उत्क्रामातः पुरुष मावपत्थाः माच्छित्थाः अस्माल्लोकावग्ने सूर्यस्य संदृशः।’ ‘हे पुरुष, उत्क्रमण करो! उठो, ऊंचे उठो! इहलोक में ही रहते हुए सूर्य के सदृश्य तेजस्वी बनो।’ पुरुष कहते हैं, वह जो तुम्हारे भीतर बसा है। शरीर तो बस्ती है। शरीर के भीतर जो बसा है वह तुम हो। वह कौन है जो भीतर बसा है? उसका ही पता नहीं, तो और तुम्हारे जागरण का क्या अर्थ हो सकता है? अपनी ही सूझ न हो, अपना ही हाथ न सूझे, उसको हम अंधा कहेंगे। और अपनी ही आत्मा भी न सूझती हो, उसको तो महाअंधा कहना होगा। और जब तक यह अंधापन है, कैसे उत्क्रमण हो? कैसे तुम ऊंचे उठो? मूर्च्छा गर्त है, खड्ड है। जागरण पंख लगा देता है। सारा आकाश तुम्हारा है, बस दो पंख चाहिए। सारे आकाश का विस्तार तुम्हारा है। चांद-तारे तुम्हारे हैं। और तुम्हें यह जागरण की कला आ जाए तो सीढ़ी मिल गई--मंदिर की सीढ़ियां मिल गईं। अब चढ़े चलो। —ओशो
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Publisher Osho Media International
Type फुल सीरीज