जीवन दर्शन – Jeevan Darshan

ऑडियोपुस्तकें — अन्य प्रारूपों में भी उपलब्ध है:ई-पुस्तकें (English)
स्टॉक में
जीवन के विभिन्न पहलुओं पर घाटकोपर, बंबई में प्रश्नोत्तर सहित ओशो द्वारा दिए गए सात अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन
जीवन के विभिन्न पहलुओं पर घाटकोपर, बंबई में प्रश्नोत्तर सहित ओशो द्वारा दिए गए सात अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन

जो आदमी धर्म को या परमात्मा को, जीवन के अर्थ को जानने के लिए उत्सुक हुआ हो, अगर वह अपने प्रति थोड़ा सच्चा नहीं है, तो उसकी खोज व्यर्थ ही चली जाएगी। उसका श्रम व्यर्थ चला जाएगा। फिर चाहे वह मंदिरों में जाए और चर्चों में और मस्जिदों में, और चाहे वह कहीं भी भटके, तीर्थों में और पहाड़ों पर, अगर वह भीतर अपने प्रति ही झूठा है, तो वह जहां भी जाएगा वहां सत्य नहीं पा सकेगा। सत्य की खोज का पहला चरण: अपने प्रति सच्चा होना है। और हमें याद ही नहीं रहा है कि हम अपने प्रति भी सच्चे हों। शायद हमें पता भी नहीं कि अपने प्रति सच्चे होने का क्या अर्थ है? और यह झूठ कोई एक आदमी बोलता हो, ऐसा नहीं है। यह झूठ कोई एक पीढ़ी बोलती हो, ऐसा नहीं है। किसी एक सदी में आकर आदमी अपने प्रति झूठा हो गया हो, ऐसा भी नहीं है। हजारों साल से झूठ पाले और पोसे गए हैं। और वे इतने पुराने हो गए हैं कि उन पर आज शक करना भी असंभव हो गया है। बहुत दिनों तक झूठ जब प्रचारित होते हैं तो वे सत्य जैसे प्रतीत होने लगते हैं। हजारों-हजारों साल तक जब किसी झूठ के समर्थन में बातें कही जाती हैं और हजारों लोग उसका उपयोग करते हैं तो धीरे-धीरे यह बात ही भूल जाती है कि वह झूठ है, वह सत्य प्रतीत होने लगती है। तो यह जरूरी नहीं है कि जो झूठ हमारे जीवन को घेरे होती हैं वे हमारे ईजाद किए हों। हो सकता है, परंपराओं ने हजारों वर्षों में उनको विकसित किया हो। और क्योंकि हमने उन्हें विकसित नहीं किया होता है, इसलिए हमें पता भी नहीं होता है कि हम किसी झूठ का समर्थन कर रहे हैं। हमें याद भी नहीं होता है, हमें खयाल में भी यह बात नहीं होती है। और जब तक यह बात खयाल में न आ जाए, जब तक हम अपने भीतर झूठ के सारे पर्दों को न तोड़ दें तब तक, तब तक हम न जान सकेंगे कि क्या है सत्य? और सत्य को जो न जान सकेगा, उसके जीवन में कभी स्वतंत्रता उपलब्ध नहीं हो सकती। और सत्य को जो न जान सकेगा, उसके जीवन में कभी आनंद के झरने फूट नहीं सकते। सत्य को जो न जान सकेगा, उसका जीवन कभी एक संगीत नहीं बन सकता है। वह दुख में जीएगा और दुख में मरेगा। अर्थहीनता में व्यर्थ ही उसका समय अपव्यय होगा। उसका जीवन चुक जाएगा और वह जीवन को जानने से वंचित रह जाएगा। —ओशो
अधिक जानकारी
Publisher Osho Media International
Type फुल सीरीज