एस धम्मो सनंतनो—भाग छह – Es Dhammo Sanantano, Vol. 06
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भगवान बुद्ध की सुललित वाणी धम्मपद पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं 122 OSHO Talks में से 9 (52 से 60) OSHO Talks का संग्रह
भगवान बुद्ध की सुललित वाणी धम्मपद पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं 122 OSHO Talks में से 9 (52 से 60) OSHO Talks का संग्रह
उद्धरण: एस धम्मो सनंतनो—भाग छह
‘न-होना’ है जीवन
बुद्ध ने एक नई आस्तिकता की भाषा दी जगत को। उसे समझो। परमात्मा कहीं है नहीं रेडिमेड। तैयार बैठा नहीं तुम्हारे लिए कि गए और कब्जा कर लिया। परमात्मा कोई वस्तु नहीं है। तुम्हें निर्मित करना होगा, सृजन करना होगा। तुम्हारे ही अंतःगृह में, तुम्हारे ही अंतर्तम में जला कर दीये को, प्रकाश को, रोशनी को, जागृति को, होश को, ध्यान को, तुम्हें परमात्मा को जन्म देना होगा। तुम्हें परमात्मा की मां बनना होगा। तुम्हें गर्भ बनना होगा।
यही मतलब है, जब बुद्ध कहते हैं, मनुष्य के ऊपर कोई भी नहीं। वे यह कहते हैं, मनुष्य के भीतर सब है, ऊपर नहीं। और मनुष्य को अगर ऊपर जाना है, तो भीतर जाना है। भीतर जाकर ही मनुष्य ऊपर जाएगा। स्वयं को पाकर ही मनुष्य सत्य को पाएगा। अपनी आत्यंतिक सचाई को पहचान कर ही परमात्मा से मिलन होगा। और यह मिलन, कहीं बाहर किसी मंदिर के द्वार पर होने को नहीं है। किसी स्वर्ग, किसी भौगोलिक-स्थिति में होने को नहीं है। यह एक अंतर-दशा में होगा, अंतर-आकाश में होगा।
बुद्ध ने बाहर से परमात्मा को इनकार दिया, भीतर रखने को। मंदिर से हटाया, ताकि तुम्हारे भीतर विराजमान कर सकें। बुद्ध से बड़ा आस्तिक संसार में कभी हुआ नहीं, होगा भी संदिग्ध है। बुद्ध की आस्तिकता इतनी गहन है, इतनी हिम्मत और साहस से भरी है कि उन्होंने ईश्वर को भी इनकार कर दिया। यह ईश्वर के विरोध में नहीं, यह ईश्वर के प्रेम में उठा कदम है। यह देख कर कि ईश्वर के नाम पर जो हो रहा है, वह ईश्वर को बिना हटाए न रुकेगा। ईश्वर को हटा लो, सब उपद्रव का जाल बंद हो जाएगा। और मनुष्य को उन्होंने विधि दी कि कैसे ईश्वर को निर्मित करो। ईश्वर सृजन है तुम्हारा।
इसे थोड़ा समझो। इसकी सूक्ष्मता का थोड़ा स्वाद लो। प्रत्येक व्यक्ति को अपने ईश्वर को निर्मित करना है। तुम्हीं हो मूर्तिकार, तुम्हीं हो मूर्ति, तुम्हीं हो वह पत्थर जिसकी मूर्ति बननी है। तुम्हीं हो वह छैनी जिससे मूर्ति बननी है। तुम्हारे अतिरिक्त कोई भी नहीं है। मनुष्य सब-कुछ है। सितार भी वही, संगीतज्ञ भी वही, स्वर-ध्वनि भी वही। तुम्हारे भीतर सब है; संयोजन देना है, ठीक-ठीक व्यवस्था जुटानी है। टूटे खंडों को पास लाना है, अखंड बनाना है। मूर्ति छिपी है अनगढ़ पत्थर में, अनगढ़ को काटना-छांटना है, व्यर्थ को अलग करना है। असार से सार का भेद करना है। और परमात्मा प्रकट हो जाएगा। परमात्मा का आविर्भाव होगा।
और तुम्हारा परमात्मा जब प्रकट होगा, तब वह तुम्हारा होगा। और जो अपना नहीं, वह भी क्या है! वह तुम्हारी ही सांसों में रमा होगा। वह तुम्हारे ही हृदय की धक-धक होगा। वह तुम्हारे ही प्राणों की ज्योति होगा। जो अपना है, वही थिर है।
अगर तुमने परमात्मा को दूसरे की तरह पा लिया, छूट जाएगा। सब दूसरे छूट जाते हैं। सिर्फ अपना होना नहीं छूटता। इसलिए बुद्ध कहते हैं, अपने को ही पा लेना बस एकमात्र पा लेना है। धन पा लोगे, छूट जाएगा। मंदिर, मकान बना लोगे, छूट जाएगा। यश, प्रतिष्ठा, छूट जाएगी। सब छूट जाएगा। इसी तरह तुमने अगर परमात्मा को भी पर की तरह पाया, दूसरे की तरह पाया, छूट जाएगा। जो पर है, वह तुम्हारा स्वभाव नहीं हो सकता। बुद्ध ने परमात्मा को तुम्हारा स्वभाव कहा।
अब इसे समझो। नास्तिक चाहता है, ईश्वर न हो, ताकि तुम स्वच्छंद हो जाओ। बुद्ध चाहते हैं, ईश्वर हटे, ताकि तुम धार्मिक हो जाओ। ताकि तुम स्वतंत्र हो जाओ। ताकि तुम्हारी महिमा पर कोई सीमा न रह जाए, कोई बाधा न हो। सब पत्थर हट जाएं। तुम्हारी मुक्ति परिपूर्ण हो जाए। तो बुद्ध ने हजारों लोगों को आस्तिक बना दिया, बिना ईश्वर के। और तुम ईश्वर को पकड़े बैठे हो और आस्तिक नहीं हो पाए। बड़ी गहरी कला बुद्ध ने मनुष्य को सिखाई।
फिर बुद्ध जब कहते हैं, ईश्वर नहीं है, तो वे किसी सिद्धांत की बात नहीं कह रहे हैं। वे यह नहीं कह रहे हैं कि ईश्वर नहीं है, ऐसा मेरा कोई सिद्धांत है। वे इतना ही कहते हैं, जब सत्य को जाना, तो स्वयं को देखा, ईश्वर को नहीं।
ओशो
बुद्ध ने एक नई आस्तिकता की भाषा दी जगत को। उसे समझो। परमात्मा कहीं है नहीं रेडिमेड। तैयार बैठा नहीं तुम्हारे लिए कि गए और कब्जा कर लिया। परमात्मा कोई वस्तु नहीं है। तुम्हें निर्मित करना होगा, सृजन करना होगा। तुम्हारे ही अंतःगृह में, तुम्हारे ही अंतर्तम में जला कर दीये को, प्रकाश को, रोशनी को, जागृति को, होश को, ध्यान को, तुम्हें परमात्मा को जन्म देना होगा। तुम्हें परमात्मा की मां बनना होगा। तुम्हें गर्भ बनना होगा।
यही मतलब है, जब बुद्ध कहते हैं, मनुष्य के ऊपर कोई भी नहीं। वे यह कहते हैं, मनुष्य के भीतर सब है, ऊपर नहीं। और मनुष्य को अगर ऊपर जाना है, तो भीतर जाना है। भीतर जाकर ही मनुष्य ऊपर जाएगा। स्वयं को पाकर ही मनुष्य सत्य को पाएगा। अपनी आत्यंतिक सचाई को पहचान कर ही परमात्मा से मिलन होगा। और यह मिलन, कहीं बाहर किसी मंदिर के द्वार पर होने को नहीं है। किसी स्वर्ग, किसी भौगोलिक-स्थिति में होने को नहीं है। यह एक अंतर-दशा में होगा, अंतर-आकाश में होगा।
बुद्ध ने बाहर से परमात्मा को इनकार दिया, भीतर रखने को। मंदिर से हटाया, ताकि तुम्हारे भीतर विराजमान कर सकें। बुद्ध से बड़ा आस्तिक संसार में कभी हुआ नहीं, होगा भी संदिग्ध है। बुद्ध की आस्तिकता इतनी गहन है, इतनी हिम्मत और साहस से भरी है कि उन्होंने ईश्वर को भी इनकार कर दिया। यह ईश्वर के विरोध में नहीं, यह ईश्वर के प्रेम में उठा कदम है। यह देख कर कि ईश्वर के नाम पर जो हो रहा है, वह ईश्वर को बिना हटाए न रुकेगा। ईश्वर को हटा लो, सब उपद्रव का जाल बंद हो जाएगा। और मनुष्य को उन्होंने विधि दी कि कैसे ईश्वर को निर्मित करो। ईश्वर सृजन है तुम्हारा।
इसे थोड़ा समझो। इसकी सूक्ष्मता का थोड़ा स्वाद लो। प्रत्येक व्यक्ति को अपने ईश्वर को निर्मित करना है। तुम्हीं हो मूर्तिकार, तुम्हीं हो मूर्ति, तुम्हीं हो वह पत्थर जिसकी मूर्ति बननी है। तुम्हीं हो वह छैनी जिससे मूर्ति बननी है। तुम्हारे अतिरिक्त कोई भी नहीं है। मनुष्य सब-कुछ है। सितार भी वही, संगीतज्ञ भी वही, स्वर-ध्वनि भी वही। तुम्हारे भीतर सब है; संयोजन देना है, ठीक-ठीक व्यवस्था जुटानी है। टूटे खंडों को पास लाना है, अखंड बनाना है। मूर्ति छिपी है अनगढ़ पत्थर में, अनगढ़ को काटना-छांटना है, व्यर्थ को अलग करना है। असार से सार का भेद करना है। और परमात्मा प्रकट हो जाएगा। परमात्मा का आविर्भाव होगा।
और तुम्हारा परमात्मा जब प्रकट होगा, तब वह तुम्हारा होगा। और जो अपना नहीं, वह भी क्या है! वह तुम्हारी ही सांसों में रमा होगा। वह तुम्हारे ही हृदय की धक-धक होगा। वह तुम्हारे ही प्राणों की ज्योति होगा। जो अपना है, वही थिर है।
अगर तुमने परमात्मा को दूसरे की तरह पा लिया, छूट जाएगा। सब दूसरे छूट जाते हैं। सिर्फ अपना होना नहीं छूटता। इसलिए बुद्ध कहते हैं, अपने को ही पा लेना बस एकमात्र पा लेना है। धन पा लोगे, छूट जाएगा। मंदिर, मकान बना लोगे, छूट जाएगा। यश, प्रतिष्ठा, छूट जाएगी। सब छूट जाएगा। इसी तरह तुमने अगर परमात्मा को भी पर की तरह पाया, दूसरे की तरह पाया, छूट जाएगा। जो पर है, वह तुम्हारा स्वभाव नहीं हो सकता। बुद्ध ने परमात्मा को तुम्हारा स्वभाव कहा।
अब इसे समझो। नास्तिक चाहता है, ईश्वर न हो, ताकि तुम स्वच्छंद हो जाओ। बुद्ध चाहते हैं, ईश्वर हटे, ताकि तुम धार्मिक हो जाओ। ताकि तुम स्वतंत्र हो जाओ। ताकि तुम्हारी महिमा पर कोई सीमा न रह जाए, कोई बाधा न हो। सब पत्थर हट जाएं। तुम्हारी मुक्ति परिपूर्ण हो जाए। तो बुद्ध ने हजारों लोगों को आस्तिक बना दिया, बिना ईश्वर के। और तुम ईश्वर को पकड़े बैठे हो और आस्तिक नहीं हो पाए। बड़ी गहरी कला बुद्ध ने मनुष्य को सिखाई।
फिर बुद्ध जब कहते हैं, ईश्वर नहीं है, तो वे किसी सिद्धांत की बात नहीं कह रहे हैं। वे यह नहीं कह रहे हैं कि ईश्वर नहीं है, ऐसा मेरा कोई सिद्धांत है। वे इतना ही कहते हैं, जब सत्य को जाना, तो स्वयं को देखा, ईश्वर को नहीं।
ओशो
इस पुस्तक में ओशो निम्नलिखित विषयों पर बोले हैं:
जीवन, मृत्यु, प्रेम, ध्यान, आस्था, प्रार्थना, सुरक्षा, साक्षीभाव, मौन, एकांत
Publisher | OSHO Media International |
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ISBN-13 | 978-81-7261-382-2 |
Dimensions (size) | 140 x 216 mm |
Number of Pages | 270 |
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