एस धम्मो सनंतनो—भाग चार – Es Dhammo Sanantano, Vol. 04
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भगवान बुद्ध की सुललित वाणी धम्मपद पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं 122 OSHO Talks में से 11 (31 से 41) OSHO Talks का संग्रह
भगवान बुद्ध की सुललित वाणी धम्मपद पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं 122 OSHO Talks में से 11 (31 से 41) OSHO Talks का संग्रह
उद्धरण: एस धम्मो सनंतनो—भाग चार
जीवन ही मार्ग है
मार्ग क्या है? जिसे हम जीवन कहते हैं, वही मार्ग है। जीवन के अतिरिक्त कहीं और मार्ग नहीं। जीवन के अनुभव में जो पक गया है, उसने मार्ग पूरा कर लिया है। तुमने अगर जीवन के अतिरिक्त कहीं और मार्ग खोजा तो भटकोगे। कोई और मार्ग नहीं है। यह क्षण-क्षण बहता जीवन, यह पल-पल बहता जीवन, यही मार्ग है। तुम मार्ग पर हो।
मनुष्य भटका है इसलिए कि उसने जीवन को तो मार्ग समझना छोड़ ही दिया, उसने जीवन के अतिरिक्त मार्ग बना लिए हैं। कभी उन मार्गों को धर्म कहता है, कभी योग कहता है। अलग-अलग नाम रख लिए हैं, बड़े विवाद खड़े कर लिए हैं। शब्दों के जाल में उलझ गया है। और मार्ग आंखों के सामने है। मार्ग पैरों के नीचे है। तुम जहां खड़े हो, मार्ग पर ही हो। क्योंकि जहां भी तुम खड़े हो, वहीं से परमात्मा की तरफ राह जाती है। तुम पीठ किए भी खड़े हो तो भी तुम राह पर ही खड़े हो। तुम आंख बंद किए खड़े हो तो भी तुम राह पर ही खड़े हो। तुम्हें समझ हो या न हो, राह से बाहर जाने का कोई उपाय नहीं। क्योंकि उसकी राह आकाश जैसी है। उसकी राह कोई पटे-पटाए मार्गों का नाम नहीं है, राजपथ नहीं है; प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पगडंडी खोज लेनी है। और इस पगडंडी को अगर ठीक से समझो तो खोजना क्या है? मिली हुई है; समझना है।
जीवन मार्ग है। जीवन के सुख-दुख मार्ग हैं। जीवन की सफलताएं-असफलताएं मार्ग हैं। भटक-भटक कर ही तो आदमी पहुंचता है। गिर-गिर कर ही तो आदमी उठता है। चूक-चूक कर ही तो आदमी का निशाना लगता है। जब तुम्हारा तीर निशाने पर लग जाए तो क्या तुम उन भूलों को धन्यवाद न दोगे, जब तुम्हारा तीर निशाने पर चूक-चूक गया था? उनके कारण ही अब निशाने पर लगा है। जब तुम खड़े हो जाओगे तो क्या गिरने को तुम धन्यवाद न दोगे? क्योंकि अगर गिरते न, तो कभी खड़े न हो पाते।...
जीवन की धूप में पकना ही मार्ग का पूरा होना है। जैसे फल पक जाता है तो गिर जाता है, ऐसे जीवन के मार्ग को जिसने पूरा कर लिया, वह जीवन से मुक्त हो जाता है। फल जब पक जाता है तो जिस वृक्ष से पकता है, उसी से छूट जाता है। इस चमत्कार को रोज देखते हो, पहचानते नहीं। फल पक जाता है तो जिस वृक्ष ने पकाया, उसी से मुक्त हो जाता है; पकते ही मुक्त हो जाता है।
कच्चे में ही बंधन है। कच्चे को बंधन की जरूरत है। कच्चे को बंधन का सहारा है। कच्चा बिना बंधन के नहीं हो सकता। बंधन दुश्मन नहीं, तुम्हारे कच्चे होने के सहारे हैं। जब तुम पक जाओगे, जब तुम अपने में पूरे हो जाओगे, वृक्ष की कोई जरूरत नहीं रह जाती, फल छूट जाता है।
ऐसे ही संसार से मुक्ति फलित होती है, जब तुम पक जाते हो।
बुद्ध के वचनों को बड़ा गलत समझा गया है। सभी बुद्धपुरुषों के वचनों को गलत समझा गया है। कहा कुछ, तुम समझे कुछ।
ओशो
मार्ग क्या है? जिसे हम जीवन कहते हैं, वही मार्ग है। जीवन के अतिरिक्त कहीं और मार्ग नहीं। जीवन के अनुभव में जो पक गया है, उसने मार्ग पूरा कर लिया है। तुमने अगर जीवन के अतिरिक्त कहीं और मार्ग खोजा तो भटकोगे। कोई और मार्ग नहीं है। यह क्षण-क्षण बहता जीवन, यह पल-पल बहता जीवन, यही मार्ग है। तुम मार्ग पर हो।
मनुष्य भटका है इसलिए कि उसने जीवन को तो मार्ग समझना छोड़ ही दिया, उसने जीवन के अतिरिक्त मार्ग बना लिए हैं। कभी उन मार्गों को धर्म कहता है, कभी योग कहता है। अलग-अलग नाम रख लिए हैं, बड़े विवाद खड़े कर लिए हैं। शब्दों के जाल में उलझ गया है। और मार्ग आंखों के सामने है। मार्ग पैरों के नीचे है। तुम जहां खड़े हो, मार्ग पर ही हो। क्योंकि जहां भी तुम खड़े हो, वहीं से परमात्मा की तरफ राह जाती है। तुम पीठ किए भी खड़े हो तो भी तुम राह पर ही खड़े हो। तुम आंख बंद किए खड़े हो तो भी तुम राह पर ही खड़े हो। तुम्हें समझ हो या न हो, राह से बाहर जाने का कोई उपाय नहीं। क्योंकि उसकी राह आकाश जैसी है। उसकी राह कोई पटे-पटाए मार्गों का नाम नहीं है, राजपथ नहीं है; प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पगडंडी खोज लेनी है। और इस पगडंडी को अगर ठीक से समझो तो खोजना क्या है? मिली हुई है; समझना है।
जीवन मार्ग है। जीवन के सुख-दुख मार्ग हैं। जीवन की सफलताएं-असफलताएं मार्ग हैं। भटक-भटक कर ही तो आदमी पहुंचता है। गिर-गिर कर ही तो आदमी उठता है। चूक-चूक कर ही तो आदमी का निशाना लगता है। जब तुम्हारा तीर निशाने पर लग जाए तो क्या तुम उन भूलों को धन्यवाद न दोगे, जब तुम्हारा तीर निशाने पर चूक-चूक गया था? उनके कारण ही अब निशाने पर लगा है। जब तुम खड़े हो जाओगे तो क्या गिरने को तुम धन्यवाद न दोगे? क्योंकि अगर गिरते न, तो कभी खड़े न हो पाते।...
जीवन की धूप में पकना ही मार्ग का पूरा होना है। जैसे फल पक जाता है तो गिर जाता है, ऐसे जीवन के मार्ग को जिसने पूरा कर लिया, वह जीवन से मुक्त हो जाता है। फल जब पक जाता है तो जिस वृक्ष से पकता है, उसी से छूट जाता है। इस चमत्कार को रोज देखते हो, पहचानते नहीं। फल पक जाता है तो जिस वृक्ष ने पकाया, उसी से मुक्त हो जाता है; पकते ही मुक्त हो जाता है।
कच्चे में ही बंधन है। कच्चे को बंधन की जरूरत है। कच्चे को बंधन का सहारा है। कच्चा बिना बंधन के नहीं हो सकता। बंधन दुश्मन नहीं, तुम्हारे कच्चे होने के सहारे हैं। जब तुम पक जाओगे, जब तुम अपने में पूरे हो जाओगे, वृक्ष की कोई जरूरत नहीं रह जाती, फल छूट जाता है।
ऐसे ही संसार से मुक्ति फलित होती है, जब तुम पक जाते हो।
बुद्ध के वचनों को बड़ा गलत समझा गया है। सभी बुद्धपुरुषों के वचनों को गलत समझा गया है। कहा कुछ, तुम समझे कुछ।
ओशो
इस पुस्तक में ओशो निम्नलिखित विषयों पर बोले हैं:
जीवन, ध्यान, एकांत, अहंकार, संदेह श्रद्धा, असुरक्षा, प्रेम, शून्य, मोक्ष
Type | फुल सीरीज |
---|---|
Publisher | ओशो मीडिया इंटरनैशनल |
ISBN-13 | 978-0-88050-900-8 |
Format | Adobe ePub |
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