दीया तले अंधेरा – Diya Tale Andhera

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झेन, सूफी, उपनिषद की कहानियों पर प्रवचन बीस प्रवचन
दीया तले अंधेरा – Diya Tale Andhera
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झेन, सूफी, उपनिषद की कहानियों पर प्रवचन बीस प्रवचन

जीवन के कुछ मूलभूत नियम समझ लेने जरूरी हैं। पहला नियम: जो हमें मिला ही हुआ है उसे भूल जाना एकदम आसान है। जो हमें नहीं मिला है उसकी याद बनी रहती है। अभावों का पता चलता है। खाली जगह दिखाई पड़ती है। एक दांत टूट जाये तो जीभ खाली जगह पर बार-बार पहुंच जाती है। जब तक दांत था शायद कभी वहां न गई थी, दांत था तो जाने की जरूरत ही न थी। खालीपन अखरता है। आत्मा से तुम सदा से ही भरे हुए हो। ऐसा कभी भी न था, कि वह न हो गई हो। वह दांत टूटने वाला नहीं। वह जगह कभी खाली नहीं हुई। सदा ही आत्मा रही है और सदा रहेगी। यही कठिनाई है। जिसका कभी अभाव नहीं हो; उसका स्मरण नहीं आता। जब तक तुम्हारे पास धन हो, तब तक धन की क्या जरूरत? निर्धनता में धन याद आता है। जब तक तुम स्वस्थ हो, शरीर का पता भी नहीं चलता। जब बीमारी आती है तब शरीर...शरीर ही शरीर दिखाई पड़ता है। बीमारी की परिभाषा ही यही है कि जब शरीर का पता चले। स्वास्थ्य की परिभाषा यही है कि जब शरीर का बिलकुल पता न चले। पूर्ण स्वस्थ व्यक्ति ऐसे होगा जैसे शरीर है ही नहीं। शरीर कभी बीमार होता है, कभी स्वस्थ होता है। आत्मा कभी बीमार नहीं होती, कभी स्वस्थ नहीं होती। आत्मा जैसी है एकरूप, वैसी ही बनी रहती है। उसका तुम्हें पता कैसे चलेगा? उसकी तुम्हें स्मृति कैसे आयेगी? यह पहली कठिनाई है। इसलिए जन्म-जन्म लग जाते हैं उसे खोजने में, जो तुम्हारे भीतर मौजूद है। बड़ा उल्टा लगता है यह कहना कि जन्म-जन्म लग जाते हैं उसे खोजने में, जिसे खोजने की कोई जरूरत न थी। जो सदा ही मिला हुआ था। जिसे तुमने कभी खोया ही नहीं था। जिसे तुम चाहते तो भी खो न सकते थे। जिसे खोने का कोई उपाय ही नहीं। इस कारण दीये के तले अंधेरा हो जाता है; यह पहली बात। दूसरी बात: जीवन चौबीस घंटे संघर्ष है। जहां-जहां संघर्ष है, वहां-वहां हमें सजग रहना पड़ता है; वहां डर है। तुम भय के कारण ही सजग होते हो। अगर सब भय मिट जायें, तो तुम सो जाओगे। कोई भय न हो तो तुम पैर तान लोगे, गहरी नींद में चले जाओगे। भय होता है तो तुम जगते हो। भय होता है, तो सुरक्षा के लिए तुम खड़े रहते हो। तुम सोते नहीं। आत्मा के तल पर कोई भय नहीं है। अभय उसका स्वभाव है। शरीर के तल पर सब तरह के भय हैं। अभय शरीर का स्वभाव नहीं है। भय उसका गुणधर्म है। अगर तुम जरा भी वहां सोये तो शरीर से छूट जाओगे। वह संपदा तुम्हारी नहीं है। वह संपदा क्षण भर को ही तुम्हारी है। आई, और गई; वहां तुम्हें जागते ही रहना पड़ेगा। —ओशो
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Publisher Osho Media International
Type फुल सीरीज