Bin Bati Bin Tel-बिन बाती बिन तेल
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सूफी, झेन एवं उपनिषद की कहानियों एवं बोध कथाओं पर उन्नीस प्रवचन।
सूफी, झेन एवं उपनिषद की कहानियों एवं बोध कथाओं पर उन्नीस प्रवचन।
आदमी तभी समझ पाता है, जब करने को समय ही नहीं रह जाता। अकसर लोग मरने के समय समझ पाते हैं कि जीवन व्यर्थ गया। इसके पहले उन्हें समझाने की कितनी ही कोशिश करो, उनकी समझ में नहीं आता। क्योंकि क्षुद्र में ही वे सार देखते रहते हैं। और उन्हें यह भी भरोसा नहीं आता
"जीवन का न कोई उदगम है, न कोई अंत।
न जीवन का कोई स्रोत है, न कोई समाप्ति।
न तो जीवन का कोई प्रारंभ है, और न कोई पूर्णाहुति।
बस, जीवन चलता ही चला जाता है।
ऐसी जिनकी प्रतीति हुई, उन्होंने यह सूत्र दिया है। यह सूत्र सार है बाइबिल, कुरान, उपनिषद--सभी का; क्योंकि वे सभी इसी दीये की बात कर रहे हैं।
पहली बात: जिस जगत को हम जानते हैं, विज्ञान जिस जगत को पहचानता है, तर्क और बुद्धि जिसकी खोज करती है, उस जगत में भी थोड़ा गहरे उतरने पर पता चलता है कि वहां भी दीया बिना बाती और बिना तेल का ही जल रहा है।
वैज्ञानिक कहते हैं, कैसे हुआ कारण इस जगत का, कुछ कहा नहीं जा सकता। और कैसे इसका अंत होगा, यह सोचना भी असंभव है। क्योंकि जो है, वह कैसे मिटेगा? एक रेत का छोटा-सा कण भी नष्ट नहीं किया जा सकता। हम पीट सकते हैं, हम जला सकते हैं, लेकिन राख बचेगी। बिलकुल समाप्त करना असंभव है। रेत के छोटे से कण को भी शून्य में प्रवेश करवा देना असंभव है--रहेगा, रूप बदलेगा, ढंग बदलेगा, मिटेगा नहीं।
जब एक रेत का अणु भी मिटता नहीं, यह पूरा विराट कैसे शून्य हो जायेगा? इसकी समाप्ति कैसे हो सकती है? अकल्पनीय है! इसका अंत सोचा नहीं जा सकता; हो भी नहीं सकता।
इसलिये विज्ञान ने एक सिद्धांत को स्वीकार कर लिया है कि शक्ति अविनाशी है। पर यही तो धर्म कहते हैं कि परमात्मा अविनाशी है। नाम का ही फर्क है। विज्ञान कहता है, प्रकृति अविनाशी है। पदार्थ का विनाश नहीं हो सकता। हम रूप बदल सकते हैं, हम आकृति बदल सकते हैं, लेकिन वह जो आकृति में छिपा है निराकार, वह जो रूप में छिपा है अरूप, वह जो ऊर्जा है जीवन की, वह रहेगी।"—ओशो
Publisher | Osho International |
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अवधि (मिनट) | 74 |
Type | एकल टॉक |
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