Adhyatma Upanishad-अध्यात्म उपनिषद
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ध्यान साधना शिविर, माउंट आबू में हुई वार्ता माला के अंतर्गत ओशो द्वारा अध्यात्म उपनिषद के सूत्रों पर दिए गए सत्रह वार्ता
ध्यान साधना शिविर, माउंट आबू में हुई वार्ता माला के अंतर्गत ओशो द्वारा अध्यात्म उपनिषद के सूत्रों पर दिए गए सत्रह वार्ता
एक ही उपाय है कि जो बुद्धि की समझ में आया है, उसे प्राणों की ऊर्जा में रूपांतरित कर लिया जाए; उसके साथ हम एक तालमेल निर्मित कर लें। हम उसे साधें भी; वह केवल विचार न रह जाए, वह गहरे में आचार भी बन जाए--न केवल आचार, बल्कि हमारा अंतस भी उससे निर्मित होने लगे
"एक ही उपाय है कि जो बुद्धि की समझ में आया है, उसे प्राणों की ऊर्जा में रूपांतरित कर लिया जाए; उसके साथ हम एक तालमेल निर्मित कर लें। हम उसे साधें भी; वह केवल विचार न रह जाए, वह गहरे में आचार भी बन जाए--न केवल आचार, बल्कि हमारा अंतस भी उससे निर्मित होने लगे। तो ही धीरे-धीरे, जो ऊपर गया है, वह गहरे में उतरेगा, और साधा हुआ सत्य, फिर आपके पुराने विचार उसे न तोड़ सकेंगे। फिर वे उसे हटा भी न सकेंगे। बल्कि उसकी मौजूदगी के कारण पुराने विचार धीरे-धीरे स्वयं हट जाएंगे और तिरोहित हो जाएंगे।
तो यह बात ठीक है, साधक के लिए सवाल ऐसा उचित है। समझ में आ जाता है, फिर हम तो वैसे ही बने रहते हैं। अगर हम वैसे ही बने रहते हैं तो जो समझ में आया है, वह ज्यादा देर टिकेगा नहीं। कहां टिकेगा? किस जगह टिकेगा? आप अगर पुराने ही बने रहते हैं, तो जो समझ में आया है वह जल्दी ही झड़ जाएगा, भूल जाएगा, विस्मृत हो जाएगा।
ऐसे तो बहुत बार आपको समझ में आ चुका है। यह कोई पहला मौका नहीं है। न मालूम कितनी बार आप सत्य के करीब-करीब पहुंच कर वापस हो गए हैं। न मालूम कितनी बार द्वार खटखटाना भर था, कि आप आगे हट गए हैं और दीवाल हाथ में आ गई है। भूल यहीं हो जाती है कि जो हमारी समझ में आता है, उसे हम तत्काल जीवन में रूपांतरित नहीं करते हैं।
इस संबंध में यह बात खयाल लेने जैसी है कि अगर आपको कोई गाली दे, तो आप तत्काल क्रोध करते हैं; और आपको कोई समझ दे, तो आप तत्काल ध्यान नहीं करते हैं। कुछ बुरा करना हो तो हम तत्काल करते हैं, कुछ भला करना हो तो हम सोच-विचार करते हैं। ये दोनों मन की बड़ी गहरी तरकीबें हैं; क्योंकि जो भी करना हो, उसे तत्काल करना चाहिए, तो ही होता है। क्रोध करना हो कि ध्यान करना हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। बुरा हम करना चाहते हैं इसलिए हम तत्काल करते हैं, एक क्षण रुकते नहीं; क्योंकि रुके, तो फिर न कर पाएंगे।
कोई गाली दे, उससे कह आएं कि चौबीस घंटे बाद आकर जवाब दूंगा। फिर कोई जवाब संभव नहीं होगा। चौबीस घंटा तो बहुत लंबा वक्त है, चौबीस क्षण भी अगर आप चुपचाप विचार में व्यतीत कर दें, तो शायद क्रोध करने का मन नहीं रह जाएगा। शायद हंसी आ जाए। शायद उस आदमी की नासमझी पता चले। या शायद वह ठीक ही गाली दे रहा है, यह भी पता चल जाए। इसलिए समय खोना उचित नहीं है; जैसे ही गाली की चोट पड़े, तत्काल उबल पड़ना जरूरी है; फिर पछताने का काम पीछे कर लेंगे।
आपने खयाल किया है कि सभी क्रोधी पछताते हैं! क्रोध करने के बाद पछताते हैं। अगर थोड़ी देर रुक जाते, तो क्रोध करने के पहले ही पछतावा आ जाता और क्रोध कभी न होता। जिसका पछतावा क्रोध के बाद आता है, वह कभी क्रोध से मुक्त नहीं हो पाएगा; जिसका पछतावा क्रोध के पहले आ जाता है, वही मुक्त हो सकता है। क्योंकि जो हो चुका, वह हो चुका; उसे अनकिया नहीं किया जा सकता।"
Publisher | Osho International |
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अवधि (मिनट) | 98 |
Type | एकल टॉक |
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