Adhyatma Upanishad-अध्यात्म उपनिषद

Trackअध्यात्म उपनिषद – Adhyatma Upanishad

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ध्यान साधना शिविर, माउंट आबू में हुई वार्ता माला के अंतर्गत ओशो द्वारा अध्यात्म उपनिषद के सूत्रों पर दिए गए सत्रह वार्ता
ध्यान साधना शिविर, माउंट आबू में हुई वार्ता माला के अंतर्गत ओशो द्वारा अध्यात्म उपनिषद के सूत्रों पर दिए गए सत्रह वार्ता

मन तो यंत्र है, और उसका उपयोग दोतरफा है: बाहर के जगत में जो घट रहा है उसे भी मन पकड़ता है, भीतर के जगत में जो घट रहा है उसे भी मन पकड़ता है। मन तो दोनों तरफ, उसकी परिधि में जो भी घटता है, उसे पकड़ता है। इससे कोई संबंध नहीं है कि मन जाए। वहां दूर कैमरा रखा
"मैंने पीछे आपको कहा कि जब समाधि से लौटता है जीवन्मुक्त वापस, तो एक मित्र पूछने आए थे कि जब समाधि में जाती है चेतना, तो मन तो पीछे छूट जाता है, और मन ही स्मृति रखता है, तो जो अनुभव चेतना को घटित होते हैं, जब चेतना मन में लौटती है, तो किसे उनका स्मरण आता है? क्योंकि चेतना गई थी अनुभव में, और चेतना कोई स्मृति रखती नहीं, चेतना पर कोई रेखा छूटती नहीं, और मन गया नहीं अनुभव में, मन पीछे रह गया था, तो स्मरण किसको आता है? फिर कौन पीछे लौट कर देखता है? मन अनुभव में नहीं गया, लेकिन अनुभव के द्वार पर ही छूट गया था। लेकिन द्वार से ही जो भी घटना घट रही है उसे पकड़ता है। मन तो यंत्र है, और उसका उपयोग दोतरफा है: बाहर के जगत में जो घट रहा है उसे भी मन पकड़ता है, भीतर के जगत में जो घट रहा है उसे भी मन पकड़ता है। मन तो दोनों तरफ, उसकी परिधि में जो भी घटता है, उसे पकड़ता है। इससे कोई संबंध नहीं है कि मन जाए। वहां दूर कैमरा रखा हो, तो यहां जो घट रहा है वह कैमरा पकड़ता रहेगा। वहां दूर टेप-रिकॉर्डर रखा हो, यहां जो मैं बोल रहा हूं, पक्षी गीत गाएंगे, हवाएं गुजरेंगी वृक्षों से, पत्ते गिरेंगे, वह टेप-रिकॉर्डर उन्हें पकड़ता रहेगा। मन को ठीक से समझ लें कि मन सिर्फ एक यंत्र है, मन में कोई चेतना नहीं है, मन में कोई आत्मा नहीं है, मन प्रकृति के द्वारा विकसित जीव-यंत्र है, जैविक यंत्र है, बायोलॉजिकल मशीन है। मन, हमारी आत्मा और जगत के बीच में है। यह यंत्र जो है, शरीर में छिपा है और जगत और आत्मा के बीच में है। जगत में जो घटता है मन उसे भी पकड़ता है। इसे पकड़ने के लिए उसने पांच इंद्रियों के द्वार खोले हुए हैं। इंद्रियां आपके मन के द्वार हैं। जैसे कि टेप-रिकॉर्डर है, तो उसका माइक मेरे पास लगा हुआ है। टेप-रिकॉर्डर हजारों मील दूर रख दें, यह माइक पकड़ता रहेगा और टेप-रिकॉर्डर तक खबर पहुंचती रहेगी। आपकी इंद्रियां माइक की तरह हैं मन के। पांच इंद्रियां मन के पांच द्वार हैं। रंग के जगत में, प्रकाश के जगत में, रूप के जगत में कुछ भी घटित होता है, तो मन ने शरीर तक आंख पहुंचाई हुई है, वह आंख पकड़ती रहती है। आंख का कैमरा घूमता रहता है, वह पकड़ता रहता है। ध्वनि के जगत में कुछ घटित होता है, संगीत होता है, शब्द होता है, मौन होता है, तो कान पकड़ता रहता है। और प्रतिपल जो पकड़ा जा रहा है, वह मन को संवादित किया जा रहा है। मन उसे संगृहीत करता रहता है। हाथ छूता है, जीभ स्वाद लेती है, नाक गंध लेती है, वह सब मन तक पहुंच रहे हैं। आपकी सारी इंद्रियां मन के द्वार हैं। ये पांच इंद्रियां मन के द्वार हैं। एक और इंद्रिय है, जिसका नाम आपने सुना होगा, लेकिन कभी इस भांति नहीं सोचा होगा, वह है अंतःकरण। वह इंद्रिय, भीतर जो भी घटित होता है, उसको पकड़ती है। वह भी इंद्रिय है। भीतर जो भी घटित होता है, जब एक आदमी समाधि में डूब जाता है, तो अंतःकरण पकड़ता रहता है--क्या घट रहा है! शांत, मौन, आनंद, परमात्मा की प्रतीति--क्या हो रहा है! अंतःकरण भीतर की तरफ खुला हुआ माइक है। वह भीतर की तरफ गई रिसेप्टिविटी है। और वहां एक की ही जरूरत है, वहां पांच की जरूरत नहीं है। पांच की तो जरूरत इसलिए है कि पंच महाभूत हैं बाहर और हर महाभूत को पकड़ने के लिए एक अलग इंद्रिय चाहिए। भीतर तो एक ब्रह्म ही है, इसलिए पांच इंद्रियों की कोई जरूरत नहीं; एक ही अंतःकरण भीतर के अनुभव को पकड़ लेता है।"
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Publisher Osho International
अवधि (मिनट) 83
Type एकल टॉक